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Class 8 Hindi
Chapter 22
पाठ-22 महर्षि अरविन्द (महान व्यक्तित्व)
पाठ का सारांश
महर्षि अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 ई० को कोलकाता में हुआ। इनके पिता डॉक्टर कृष्णधन घोष और माता स्वर्णलता देवी थीं। अरविन्द को सात वर्ष की आयु में शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया। उन पर भारतीयों से मिलने पर प्रतिबन्ध था। फिर भी आगे चलकर अरविन्द एक क्रान्तिकारी, स्वतन्त्रता सेनानी, महान भारतीय राजनैतिक, दार्शनिक तथा वैदिक पुस्तकों के व्याख्याता बन गए। सन् 1893 ई० में अरविन्द भारत लौटे। यह वर्ष भारत में नवजागरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन में विवेकानन्द का उद्घोष, तिलक द्वारा गणपति उत्सव का आरम्भ, ऐनी बेसेण्ट का भारत आना तथा गांधी जी को दक्षिणी अफ्रीका रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष- ये इस वर्ष की प्रमुख घटनाएँ थीं। इक्कीस वर्ष की आयु में अरविन्द ने देश को स्वतन्त्र कराने और भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने का संकल्प लिया। वे बड़ोदरा आकर एक कालेज में प्रधानाचार्य बने। उन्होंने बाद में ‘वंदे मातरम्’ पत्र का सम्पादन भी किया। उन्होंने युवकों को ईमानदारी, अनुशासन, एकता, धैर्य
और सहिष्णुता द्वारा निष्ठा विकसित करने को कहा। सन् 1903 ई० में वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। अँग्रेजों ने भयभीत होकर सन् 1908 ई० में उन्हें और उनके भाई को अलीपुर जेल भेजा। यहाँ उन्हें दिव्य अनुभूति हुई जिससे. उन्होंने ‘काशकाहिनी’ नामक रचना में व्यक्त किया। जेल से छूटकर अँग्रेजी में ‘कर्मयोगी’ और बंगला भाषा में ‘धर्म’ पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
उन्होंने 1912 ई० तक सक्रिय राजनीति में भाग लिया। इसके बाद उनकी रुचिं गीता, उपनिषद और वेदों में हो गई। भारतीय संस्कृति के बारे में उन्होंने ‘फाउण्डेशन ऑफ इण्डियन कल्चर’ तथा ‘ए डिफेन्स ऑफ इण्डियन कल्चर’ नामकं प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। उनकी काव्य रचना ‘सावित्री’ अनमोल धरोहर है।
1926 ई० से 1950 ई० तक वे अरविन्द आश्रम में तपस्या और साधना में लीन रहे। यहाँ उन्होंने सभाओं और भाषणों से दूर रहकर मानव कल्याण के लिए चिन्तन किया। वर्षों की तपस्या के बाद उनकी अनूठी कृति ‘लाइफ डिवाइन’ (दिव्य जीवन) प्रकाशित हुई। इसकी गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है। श्री अरविन्द अपने देश और संस्कृति के उत्थान के लिए सतत सक्रिय रहे। उनका पाण्डिचेरी स्थित आश्रम आज भी आध्यात्मिक ज्ञान का तीर्थस्थल माना जाता है, जहाँ विश्व के लोग आकर अपनी ज्ञान-पिपासा शान्त करते हैं।
अभ्यास
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
डा० कृष्णधान घोष ने अरविंद के बारे में अध्यापकों को क्या निर्देश दिया?
उत्तर :
डा० कृष्णधन घोष ने अध्यापकों को निर्देश दिया कि अरविन्द को भारतीयों से न मिलने दिया जाए।
प्रश्न 2.
वर्ष 1893 क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर :
वर्ष 1893 ई० भारत के लिए नवजागरण का विशेष वर्ष था। इसमें निम्न घटनाएँ हुई
- विवेकानन्द द्वारा शिकागो धर्म सम्मेलन में उद्घोष।
- तिलक द्वारा गणपति उत्सव का आरम्भ।
- ऐनी बेसेण्ट का भारत आना।
- गांधी जी का रंगभेद के विरुद्ध दक्षिणी अफ्रीका जाना।
प्रश्न 3.
अरविन्द को भारत किस रूप में दिखाई देता था?
उत्तर :
अरविन्द को भारत, माती के रूप में दिखाई देता था।
प्रश्न 4.
अरविन्द द्वारा लिखी गयी किस पुस्तक की गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है?
उत्तर :
अरविन्द द्वारा लिखी गयी लाइफ डिवाइन (दिव्य जीवन) पुस्तक की गणना विश्व के महान कृतियों में की जाती है।
प्रश्न 5.
सही (✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाइए (चिह्न लगाकर)
(क) श्री अरविन्द का आश्रम बंगाल में है। (✗)
(ख) श्री अरविन्द ने चौदह वर्ष तक रूस में शिक्षा प्राप्त की। (✗)
(ग) श्री अरविन्द को धन-धान्य की लालसा सम्मोहित नहीं कर पाई।। (✓)
(घ) श्री अरविन्द ने फाउण्डेशन ऑफ इण्डियन कल्चर नामक पुस्तक लिखी। (✓)
प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
- श्री अरविन्द और उनके भाई वारीन घोष को अलीपुर बम केस के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया।
- जेल में उन्होंने काशकाहिनी नामक रचना की।
- उनके द्वारा रचा गया काव्य सावित्री साहित्य जगत् की अनमोल धरोहर है।
- पाण्डिचेरी स्थित आश्रम उनकी तपोभूमि थी।
प्रश्न 7.
वाक्यों को सही क्रम में लगाइए (सही क्रम में लगाकर)
उत्तर :
- श्री अरविन्द का जन्म कोलकाता में हुआ।
- इंग्लैण्ड में अरविन्द ने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
- भारत लौटने पर वे बड़ोदरा के कॉलेज में प्रधानाचार्य हो गए।
- उन्होंने ‘वन्देमातरम्’ पत्र का सम्पादन किया।
- पाण्डिचेरी स्थित आश्रम उनकी तपोभूमि थी।
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